त्रिदोष वात, पित,कफ के उपाय
त्रिदोष एक पूर्ण वैज्ञानिक सिद्धांत है। जो आयुर्वेद की एक अद्भुत खोज है। त्रिदोष का मतलब है वात , पित और कफ । यदि त्रिदोष समावस्था में है तो शरीर स्वस्थ होगा और विषमावस्था में है तो अस्वस्थ होगा।
व्यक्ति के लिए सही इसी में है कि वह जितना संभव हो सके रोग के बचने का प्रयास करें। न कि रोग होने बाद डॉक्टर के पास जाए । इलाज से बचाव सदा ही श्रेष्ठ है। त्रिदोष से बचने के लिए ऋतुचर्या , आहार, विहार और दिनचर्या का पालन आवश्यक है।
भारत में 70 से 75 प्रतिशत लोगों को वात रोग है। रोज हमारे शरीर में वात, पित और कफ की स्थिति स्थिर नहीं रहती। सुबह वात अधिक होता है, दोपहर में पित हावी होता है, शाम को कफ की अधिकता होती है।
वात, पित, कफ शरीर के ऐसे दोष है जिनके बिना शरीर काम ही नहीं कर सकता। मौषम के हिसाब से शरीर में इसकी स्थिति होनी चाहिए।
वात/ वायु का स्थान है कमर से अंगूठे तक , पित का स्थान कमर से छाती तक ओर कफ का स्थान छाती से सिर तक । ये तीनों अपने स्थान से हिलने नहीं चाहिए । तभी आदमी स्वस्थ रह सकता है।
वात, पित और कफ के उपाय –
मौषम के अनुसार दिनचर्या होनी चाहिए।
खाना मौसम के अनुसार खाना चाहिए।
तभी इनसे बचा जा सकता है।
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